मेरा टूटा हुआ दिल
जब मैं पहली बार अपने पति से मिली, तब मैं केवल 15 वर्ष की थी। वह 16 वर्ष का था। उस छोटी सी उम्र में भी, मैं एक मजबूत, स्वतंत्र स्त्री थी। मुझे पता था कि मैं जीवन में क्या पाना चाहती हूँ और उसे पाने के लिए सब कुछ करने करने को तैयार थी। एक चीज जो मैं जीवन से चाहती थी, वह मेरे पति थे। मुझे शायद पता नहीं था कि एक दर्दनाक और भावनात्मक ज्वार मेरी ज़िंदगी में आने वाला था।
हमारी शादी को हुए अभी कुछ वर्ष ही बीते थे, मुझे पता चला कि मेरे पति इंटरनेट पर जुड़ने वाली महिलाओं को निर्लज्ज रूप से यौन ईमेल भेजते थे। मैं परेशान हो गई और मैंने उसका विरोध किया, मगर जब उसने माफी मांगी तो मुझे विश्वास हो गया था कि वह भविष्य में ऐसा नहीं करेगा, हम उसे भूल कर आगे बढ़े। लगभग डेढ़ वर्ष बाद, मुझे मेरी ही नाक के तले चल रहे उसके एक चक्कर के बारे में पता चला। वह शहर में एक औरत के साथ घूमा, उसे एक होटल में रखा, और अपने पूरे सप्ताहांत उसके साथ सेक्स किया था।
इस बार मैं सिर्फ परेशान महसूस नहीं कर रही थी बल्कि गुस्से में आग-बबूला हुई थी, इसलिए मैंने उसे घर से बाहर निकाल दिया। लगभग एक हफ्ते बाद उसने मुझे फोन किया और रोने-बिलखने लगा। मैंने उससे कहा कि ठीक है हम बात कर सकते हैं और हमने अपनी शादी के बाद पहली बार एक साथ प्रार्थना की। हमने एक सलाहकार को ढूंढना शुरू किया और लगभग एक डेढ़ वर्ष बाद हालात सुधरने लगे थे।
मैं फिर भी अनजान थी, हालांकि, वह बस और अधिक छुपा कर सब करने लगा और उसने अब वेश्याओं के साथ यौन संबंध बनाने शुरू कर दिए थे- इसके पीछे दो कारण थे कि एक तो मुझे पता नहीं चलेगा और दूसरा ये कि किसी से कोई भावनात्मक लगाव नहीं होगा जैसा कि उसके पहले वाले चक्कर में हुआ था। यह मेरे पति की सेक्स की लत ने उसे इस हद तक गिरा दिया था, ये सब उसकी नौ वर्ष की उम्र में शुरू हुआ जब उसके संपर्क में अश्लील साहित्य आया, ये सब उसी का परिणाम था।
मैं पूरी तरह से बिखर गई थी। मैं बेकाबू सी होकर तीन दिनों तक सदमे में रही।
यह सब मुझे पता चल जाने पर, मुझे इन सब के बारे में अंजान होना अपनी मूर्खता लगी, बल्कि अंतत: हमारी शादी को समाप्त करने का अपना फैसला भी बिल्कुल ठीक लगा। मैंने अपनी शादी की अँगूठी को बैठक के कमरे में एक टेबल पर एक पत्र के साथ छोड़ दिया, जिसमें लिखा था कि मैं तलाक की अर्जी दाखिल करने जा रही हूँ। मेरी माँ ने मुझे मेरा सामान पैक करने और उस देश में वापस लौट जाने में मदद की, जिसे मैं और मेरे पति बस कुछ दिन हुए छोड़ कर यहाँ चले आये थे। मैं पूरी तरह से बिखर गई थी। मैं बेकाबू सी होकर तीन दिनों तक सदमे में रही। शादीशुदा जीवन की इस बड़ी उथल-पुथल ने मुझे बीमार, एवं अशक्त कर दिया और कुछ भी सोचने या महसूस करने लायक नहीं छोड़ा था।
उसे लगभग 3,000 मील पीछे छोड़ देने के बाद, मैंने जवाब तलाशने शुरू कर दिए। समस्या यह थी, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ से शुरू करूँ। मेरे पति ने मुझे जो सारे दर्द और पीड़ाएं दी उसके बावजूद भी मैं उससे प्यार करती थी। हालांकि, उसकी हरकतों ने मुझे मजबूर कर दिया था कि मैं फिर कभी उसके साथ न रहूँ।
ऐसा नहीं है कि मैं एकदम सम्पूर्ण और सही थी – मेरी अपनी बहुत सी समस्याएँ थी जो इस उथल-पुथल के द्वारा बाहर आई थी। इससे पहले, मैं हमेशा लोगों की स्वीकृति और उनके ध्यान द्वारा अपनी हर बात की पुष्टि करवाना चाहती थी। इसलिए मैंने शुरू में उनके अवैध विवाहोत्तर संबंधो को व्यक्तिगत रूप से लिया। शायद मैं ही पत्नी के रूप में उसकी दिलचस्पी को बांध कर नहीं रख सकी थी। मैं कैसे जान पाती कि यह सब फिर से किसी और के साथ नहीं होगा?
इस बुरी आदत के जाल में फँस कर, उसने जो भी विनाशकारी विकल्प चुने उससे वह इस बुराई के दलदल में और भी बुरी तरह से धंसता चला गया।
हमारा तलाक अभी आखिरी चरण में था, हालांकि, हमने फोन और ईमेल पर फिर से बात करना शुरू कर दिया। अब हम दिल खोल कर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते थे और हमनें इस पर भी बात की कि हमारे वैवाहिक जीवन में आखिर कहाँ क्या गलतियाँ हुई थी। सच्चाई यह थी कि मेरे उनके जीवन में आने से बहुत पहले ही मेरे पति को सेक्स की बुरी लत लग गई थी, इस लत के जाल में फँस कर, उसने जो भी विनाशकारी विकल्प चुने उससे वह इस बुराई के दलदल में और भी बुरी तरह से धंसता चला गया। वह बदलना चाहता था, पर वह नहीं जानता कि यह कैसे करे, और मुझे भी यह नहीं पता था कि कैसे करें। मैं अभी भी बहुत अधिक दुखी थी। मेरी आशा सिर्फ इतनी थी कि मैं बस आगे बढ़ जाना चाहती थी और चाहती थी कि शायद भविष्य के किसी रिश्ते में फिर वही गलतियाँ न हों। लेकिन इतनी आलोचनात्मक बातें करते हुए, हम पास आते गए और हमने कुछ गहरे दर्द और समस्याओं पर बात की।
छह महीने अलग रहने के बाद, मैंने और मेरे पति ने समझौता कर लिया। मुझे गलत मत समझना लेकिन हमारी समस्याओं का समाधान रातों-रात नहीं हुआ। हमारी शादी को खूबसूरत बनाने में हमें एक दशक से ज्यादा का समय लगा है। यह सफर किसी भी तरह से आसान नहीं रहा, लेकिन अब हमारे संबंध बिना किसी बड़े उतार-चढ़ाव के एक सामान्य समतल धरातल पर आ गए हैं।
इस अनुभव ने मुझे खुदकुशी की हद तक पहुँचा दिया था। इसने मुझे एहसास कराया कि मैं अपने पति को "सुधार" नहीं सकती थी। लेकिन मैं अपनी समस्याओं और रवैये में बदलाव करके उनकी मदद कर सकती थी। जबकि मैं पूरी तरह से उसकी समस्या नहीं थी (और वह अकेले ही अपने विकल्पों के लिए जिम्मेदार था), मैं उसके समाधान का हिस्सा बन सकती थी।
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