मेरी बीमारी का दौर
मैंने लोगों को यह कहते सुना है कि "बीमारी लोगों की ज़िंदगी बदल सकती है।" मैंने खुद इसका अनुभव किया कि जब मेरी जाँच में मुझे यह पता चला था कि मुझे लसीका ग्रंथि का क्षय रोग है, जो एक गैर-संक्रामक, स्थानीय प्रकार की टीबी है, यह इतनी दुर्बल करने वाली बीमारी थी इसने मेरी जीवन शैली को पूरी तरह बदल दिया था।
2005 में, मैं ख़ुशी के सातवें आसमान पर थी जब मेरी गर्भावस्था की रिपोर्ट सकारात्मक आई। घर के सभी लोग ये खुशखबरी सुनकर उत्साहित थे! हालांकि, जल्द ही ख़ुशी के वो दिन अचानक ही दुःख के दिनों में बदल गए जब मैंने अपनी ठुड्डी के नीचे एक छोटी सी गाँठ महसूस की। डॉक्टर को संदेह था कि यह टीबी है लेकिन उसने कहा कि मेरा उपचार करवाना अभी ठीक नहीं है, क्योंकि मैं गर्भवती हूँ और तेज़ असरदार दवाएँ गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुँचा सकती हैं। इस सब ने मुझे विचलित कर दिया! एक बार जब परीक्षण में पुष्टि हो गई कि यह टीबी ही है, तो मुझे हल्की दवाएं दी गई थी और जब मेरी बेटी का जन्म हुआ था, तब तक गाँठ कम हो गई थी।
मैं गर्भवती थी और तेज़ असरदार दवाएं गर्भ में पल रहे बच्चे को नुकसान पहुँचा सकती थी।
मुझे लगा कि मैं ठीक हो गई हूँ, लेकिन जल्द ही बीमारी ने दुबारा हमला किया और मैं वापस दवाओं के सेवन पर आ गई। उस समय, गाँठ की उपस्थिति या अनुपस्थिति ही मेरी बीमारी का एकमात्र स्पष्ट संकेतक थी। हालाँकि, बीमारी के कुछ महीनों के बाद, मैंने देखा कि गाँठ फिर से बन गई थी और बड़ी हो रही थी। मैंने एक टीबी विशेषज्ञ से सलाह लेने का फैसला किया क्योंकि मैं चिंतित थी कि तेज़ असरदार और महँगी दवाएँ खाने के बावजूद भी बिना किसी ठोस राहत के एक वर्ष से अधिक समय बीत गया था।
चाहे लसीका ग्रंथि की टीबी को गैर-संक्रामक माना जाता है, पर फिर भी मैं अपनी बेटी जो अभी एक वर्ष की थी, और मेरे परिवार के अन्य सदस्यों के लिए भी चिंतित थी। मुझे डर लग रहा था कि कहीं ये बीमारी उनको ना हो जाए।
अब सीधा 2010 में आते है, मुझे बीमारी हुए पांच साल हो गए थे, मेरा अभी भी इलाज चल रहा था। मैं बड़ा ही दयनीय महसूस कर रही थी! मैंने एक बहुत ही अच्छे डॉक्टर की सलाह लेनी शुरू की थी, जो टीबी के इलाज में माहिर था। उन्होंने महसूस किया कि मेरी बीमारी पर दवा का असर नहीं होता और इसलिए उन्होंने संक्रमण को रोकने और ठीक करने के लिए बहुत ही अधिक तीव्र असरकारी दवाओं के साथ-साथ इंजेक्शन देना शुरू किया था। उन्होंने सुझाव दिया कि मैं अपनी गाँठ को हटाने के लिए मामूली सर्जरी करवा लूँ, गाँठ अब तक गोल्फ की गेंद जैसी बड़ी हो चुकी थी। इससे बीमारी का असर घट जाएगा और उपचार अधिक प्रभावी हो सकेगा।
इस बीमारी के पांच साल बाद भी मैं स्वस्थ नहीं हुई थी।
मैंने सर्जरी करवा ली थी, लेकिन दवाएँ इतनी तेज़ असरदार थी कि मेरा कमजोर शरीर उसे सह नहीं पा रहा था। यहाँ तक की दफ्तर जाना भी दुष्कर लगने लगा था; मुझे मिचली, और कंपकंपी होती थी, मेरी भूख मर गई थी। और तो और मुझे अपने जिन बालों पर मान था वो बुरी तरह से झड़ने लगे थे। ये सब दवाओं के दुष्प्रभाव थे! एक तरफ काम करने का दबाव, दूसरी तरफ छोटी बेटी का ख्याल रखना और घर के काम करना ये सब संभालना इतना मुश्किल था कि मैंने लगभग नौकरी छोड़ने का फैसला कर लिया था, ये नौकरी जिसे मैं एक दशक से भी ज्यादा समय से कर रही थी।
मैंने अपने सुपरवाइजर से अपने हालात पर चर्चा की, जिसने "मुझे स्वस्थ होने के लिए बिना तनख्वाह काटे मुझे कुछ महीनों की चिकित्सा छुट्टी दे दी,” भले ही मैंने सिर्फ "एक-दो महीनों के लिए ही छुट्टी मांगी थी"।
मुझे प्राप्त हुई उस कृपा की अवधि से मुझे इस बीमारी से उबरने में मदद मिली।
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