क्या मुझ में ही कोई कमी है?
हम बड़े रोमांचित और उत्साहित थे - गर्भावस्था का परीक्षण सकारात्मक था और सब कुछ सही थाI एक छोटा सा आदर्श परिवार, एक छोटा प्यारा सा बच्चा, एक उत्तम भविष्य। हालाँकि मेरे पेट पर, तब भी मेरे अंदर बढ़ने वाले शिशु के लक्षण नहीं दिख रहे थे, लेकिन मेरा चमकता चेहरा और हर्षित दिल इसे छिपा नहीं सकता था। सब कुछ आशाओं और खुशियों से भरा लग रहा था।
यह वाकई विचित्र है कि कैसे एकाएक चीज़ें बदल सकती हैं। रोज सामान्य की तरह वॉशरूम में जाना, खून का एक हल्का सा धब्बा। एक नियमित अल्ट्रासाउंड, लेकिन दिल की धड़कन का कोई लक्षण नहीं। भीतर नन्हेंनन्हें हाथों और पैरों के फड़कने की उम्मीद की जगह एक स्थिरता और मौन ने ले ली। हमारे दिल टूट गए थे। हमारे भीतर अब किसी नन्हें जीवन की आशा टूट गई थी, दिलों में अनिश्चितता और खालीपन भर गया था।
जल्द ही यह बात साफ़ हो गई कि जिस छोटे बच्चे के लिए मैंने प्रार्थना की थी जिसके आने के सपने देखे थे वह अब मेरे गर्भ में नहीं पल रहा था। इसके बाद मुझे जिस बारे में आगाह किया गया वो उससे भी कहीं अधिक दर्दनाक था। मुझे अपने पेट में ही मर चुके बच्चे को जन्म देने की कठिन और भावनात्मक रूप से तोड़ देने वाली प्रक्रिया से गुजरना था।
मेरे दुःख में मुझे कई उदासीन स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों के ढांढस ("रो मत, यह कोई बड़ी बात नहीं है") और ना ही मेरे मित्रों और परिवार की असंवेदनशील टिप्पणियों ("मजबूत बनो, तुम ठीक हो, इससे आगे बढ़ जाओ", तुम जल्दी ही फिर से दुबारा कोशिश कर सकती हो, यह वैसे भी अभी बच्चा नहीं बना था") से कोई मदद मिली।
मैं एक स्त्री और एक पत्नी के रूप में खुद को असफ़लअसफ़ल महसूस करती थी। मुझे यकीन था कि दूसरे भी मुझे इसी नज़र से देखते थे।
दूसरों और स्वयं मेरे विचारो से भी मेरी आत्मग्लानि बढ़ती जा रही थी। मेरे मन में सवालों का तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था। क्या होगा अगर मेरे में ही कुछ कमी हुई तो? यदि मैं कभी दोबारा बच्चा पैदा नहीं कर पाई तब क्या होगा?
मुझे न केवल अपने शिशु को खो देने का दुख हो रहा था, बल्कि भविष्य की अनिश्चितता को लेकर भी मेरा बढ़ता जा रहा था। मैं एक स्त्री और एक पत्नी के रूप में खुद को असफ़ल मान रही थी। मैं जानती थी कि लोग मेरे बारे में क्या सोचते थे। अपने गर्भ के शिशु को खोना मेरे लिए जीवन की अब तक की सबसे बड़ी शारीरिक और भावनात्मक दर्दनाक घटना थी। मगर मैं इस आत्मग्लानि, तन्हाई, अनिश्चितता, असफ़लता और गहरे दुःख से बाहर आ गई।
आशा और खुशियों को फिर से पाने में थोडा समय लगा, लेकिन कुछ बातें ऐसी थीं, जिन्होंने मुझे ठीक होने में मदद की। मुझे एहसास हुआ कि इस दुःख की घड़ी में भी कहीं मेरा भला छुपा था और अपने बच्चे का जश्न मनाना अच्छा था –कि मैं इस नुकसान को अनदेखा न करूँ और इसे एक तरफ न धकेल दूँ। इससे मुझे यह अनुभव मिल सका कि मेरे नुकसान के बारे में बात करना एक आशीर्वाद बन सकता था, जिसने मुझे कई और ऐसे लोगों से जोड़ा जो खुद भी इसी तरह के दुःख से जूझ चुके थे।
मेरे लिए सबसे बड़ी सहायता यह रही कि मुझे यह अनुभव मिला कि खालीपन और अनिश्चितता के बावजूद भी ईश्वर मेरे दिल को ठीक कर सकते हैं और मेरे दिल को फिर से आशाओं से भर सकते हैं।
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