अकल्पनीय पीड़ा
दुर्व्यवहार से होने वाला कष्ट अकल्पनीय होता है, जब तक कि आप उसको खुद अनुभव नहीं करते। और यह सिर्फ बाहरी तौर पर होने वाली पीड़ा नहीं है, बल्कि अंतर्मन तक महसूस होता है, जो किसी भी रिश्ते को छिन्न-भिन्न कर देता है। जब आप किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रताड़ित किए जाते हैं जिसे आप बहुत प्यार करते हैं, तो आपकी दुनिया टूट कर बिखरने लगती है, जैसे बस सब कुछ तबाह हो जाता है। दुर्व्यवहार को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए; यह धीरे-धीरे अपने कष्टमय शादीशुदा जीवन में मेरी समझ में आया। मुझे न केवल शारीरिक ज़ख्म मिले, बल्कि मेरा दिल भी पूरी तरह छलनी हो गया और मेरा अंतर्मन क्षत-विक्षत हो गया।
इन्ही हालातों के बीच में, मैंने अपने दर्द और असफलता को बयाँ करने के लिए एक कविता लिखी।
मुझे शादी से पहले के दिनों की याद आती है
वो घंटो बातें करना
वो एक दूसरे से प्यार करना
छोटी-छोटी बातों पर लड़ना
देर रात तक, न खत्म होने वाली बातें, अपने दिल के राज़ बताना
वो अजीबो-गरीब सपने, एक दूसरे पर वो अधिकार जताना
वो मिजाज़ दिखाना, तुम्हारी कॉल की प्रतीक्षा करना
वो बार बार तुम्हारी तस्वीरें देखना और भेजे हुए सन्देश पढ़ना
बस बिना किसी बात के मुस्कुराना, आँख बंद करके तुम पर भरोसा करना
तुम्हारी बाहें, आलिंगन और चुंबन, तुम्हारी वो मासूमियत भरी इच्छाएं!
...और अब बस इस शादीशुदा जीवन में, कोई भी सन्देश नहीं आता,
कोई कॉल नहीं, मैं तुमसे प्यार करता हूँ, अब ये भी नहीं कहते
अब है बस अँधेरी दुनिया, चोट और घाव, गालियाँ और दर्द
लंबा अकेलापन, दबी-घुटी भावनाएं
देर रात तक रोना-बिलखना, दिल तोड़ने वाले राज़
आघात देने वाला धोखा, टूटे-बिखरे हुए सपने
मिट गई यादें, बनावटी मुस्कुराहटें
टूटा हुआ भरोसा, दिल के कुटिल दर्द-
मुझे नहीं पता कि मुझे तुमसे इतना लगाव कैसे हो गया था!
हर बार जब वह मेरे साथ लड़ता था, मैं एक गहरे सदमे और भावनाओं के भवंर में डूब जाती थी- मैंने नियंत्रण खो दिया था। मेरी इन्हीं कमजोरियों ने, उसे वह शक्ति प्रदान की जिससे वो मुझे आहत कर सकता था। किसी झगड़े में, जब उसने कभी मेरी भावनाओं को बहलाया, तो मैंने उस पर भरोसा कर लिया। मुझे उस पर विश्वास हो गया था। लेकिन हकीकत में, वो मुझे खैरात में मिली कोई वस्तु की तरह समझता था जिसका कारण उसके विधर्मी परिवार की दखलंदाजी से पैदा हुई परस्पर-विरोध की समस्याएं, उसकी शराब की लत, और उसकी बेरहमी थी। हकीकत में, उसने हमेशा मुझसे एक गुलाम की तरह व्यवहार किया।
शराब ने उसे और भी बुरा बना दिया था। जब वह शराब पीकर आता था, तो अपनी सोचने समझने की शक्ति और संवेदनशीलता खो देता था – बस यही वो समय होता था जब वो मुझ पर सबसे ज़्यादा शारीरिक ज़ुल्म करता था। वो जितना मार सकता था मुझे मारता था, उस समय मुझे लगता था कि उसने मुझे इतनी ज़्यादा चोट पहुंचाई है जिसकी मैं हकदार नहीं थी, शायद इसलिए क्योंकि मैंने उसे इतना ज़्यादा प्यार किया था, जिसके वो लायक नहीं था।
मेरी बेटी इसी दहशत के साये में बड़ी हुई वो हमेशा मुझसे कहती, "माँ, मुझे कभी-कभी डर लगता है कि पापा मुझे भी वैसे ही मारेंगे जैसे वह आपको मारते हैं।"
मैं उसके प्यार में इतनी अंधी हो गई थी कि कई सालों तक उसके असली चरित्र को अपने परिवार और दोस्तों से छुपाती रही। इस शादी में मैंने अपना अस्तित्व, अपने मूल्य और अपना सम्मान तक खो दिया। मैं निराश और अपमानित हो चुकी थीI उसने मुझे हर संभव तरीके से आत्मिक और शारीरिक रूप से तिरस्कृत किया, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। हालात ऐसे हो गए थे कि जैसे मैं उसके लिए फर्नीचर के एक पुराने टुकड़े के सिवा कुछ भी नहीं थी- जिससे वह छुटकारा पाना चाहता था।
उसे ये कभी एहसास नहीं हुआ कि हर बार जब भी उसने मुझे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया, तो उसने उस प्यार और इज्जत को कुचल दिया, जो कभी मेरे दिल में उसके लिए हुआ करती थी। अगर वह मेरे प्रति कुछ ईमानदार और मानवीय बात कर सकता था तो वह बस इतना था कि वह मुझे असंगति के आधार पर तलाक दे देता। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया उसे सिर्फ अपने अहंकार की परवाह थी। मैं इसी दुविधा में उसके साथ रही कि जिस व्यक्ति से मैंने प्यार किेया था, उससे उम्मीद न छूटती थी, लेकिन एक कडवा सच यह था कि जिस व्यक्ति से मैंने प्यार किेया था वो तो अब कहीं था ही नहीं।
मुझे उससे बड़ा सदमा तब लगा, जब मेरे साथ शादीशुदा रहते हुए उसने एक और महिला से रिश्ता जोड़ा। मुझे उस पर संदेह हुआ था, लेकिन वो एक साल तक इससे इनकार करता रहा। फिर भी, जब भी उसका मन करता, मेरा इस्तेमाल करता और मुझे प्रताड़ित करता। मैं पूरी तरह से बर्बाद हो गयी थी - मैं पागल हो गयी, मैं मुश्किल से ही खा और सो पाती थी। मैंने शायद ही कभी उससे या अन्य लोगों से बात की हो। धीरे-धीरे, मैं मानसिक आघात में डूबती जा रही थी।
यह सब मेरी बेटी के सामने हुआ। वह अभी भी कई बार बोलती है कि "पापा ने माँ को कैसे धक्का दिया और उसे बाथरूम में बंद कर दिया था।" मेरी बेटी इसी दहशत के साये में बड़ी हुई वो हमेशा मुझसे कहती, "माँ, मुझे कभी-कभी डर लगता है कि पापा मुझे भी वैसे ही मारेंगे जैसे वह आपको मारते हैं।"
मैं सिर्फ अपनी बच्ची की वजह से इस हिंसा को सहन कर रही थी। मैं इस रिश्ते को बनाए रखना चाहती थी, ताकि मेरी बेटी को अलग हुए माता-पिता न देखने पड़े, लेकिन परिस्थितियां इतनी ज़हरीली हो गई थी की उसके लिए अब वहां सामान्य जीवन जीना नामुमकिन था।
पिछले कुछ वर्षों में, जब वो मेरे शरीर के हर हिस्से को चोटिल कर चुका था, उसने मुझे बताया की वो मुझे साथ नहीं रखना चाहता और वह चाहता था की मैं मर जाऊं। जब उसने मुझे ऐसा कहा था- इतना ही नहीं मैंने उसकी आंखों के सामने ही अपनी ज़िंदगी खत्म करने की कोशिश की थी। मैंने मॉर्फिन-वाली सारी दर्द निवारक दवाइयाँ निगल ली, जो मैं अक्सर पीठ दर्द के लिए खाती थी।
यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था; यह बहुत ही दर्दनाक और डरावना था, क्योंकि मैं सांस ले रही थी और आईसीयू में जिन्दा थी। मैं दुखी थी, और पूरी तरह टूट चुकी थी और मैं सिर्फ मर जाना चाहती थी। मेरे माता-पिता ने मुझ संभाला, मेरा साथ नहीं छोड़ा, मुझे वो सहारा और ताकत दी जिसकी मुझे स्वस्थ होने और सब ठीक करने के लिए अत्यन्त जरूरत थी। मैं पहले से ही एक साल से आंशिक अवसाद से जूझ रही थी और अवसाद की दवाएं खा रही थी। मैंने अपने अस्पताल के बिस्तर पर ईश्वर से प्रार्थना की, और एक निरर्थक और हिंसक रिश्ते के कारण आत्महत्या करने और कीमती जीवन को खत्म करने के प्रयास के लिए माफ़ी मांगी। और फिर मैं दिल खोल कर रोई। हॉस्पिटल से निकलने पर मुझे महसूस हुआ कि मैं अब वो कमजोर महिला नहीं हूँ, जैसा कि मैं हुआ करती थी।
मुझे अपनी आंतरिक शक्ति का एहसास हुआ, मेरी पीड़ाओं ने मुझे इतना मजबूत बना दिया था कि अब कोई भी मुझे तोड़ नहीं सकता था। मैं अब अपने उस दुखद बंधन – निराशाजनक शादी के रिश्ते से मुक्त होना चाहती थी जिसे मैं कई वर्षों से झेल रही थी। मैं अब एक स्वतंत्र महिला बनना चाहती थी जिसे किसी पुरुष की जरूरत नहीं है। अंत में, मैंने अपने हिंसक रिश्ते से छुटकारा पाना शुरू कर दिया। मुझ में कमियाँ थी और यह सब सामान्य और ठीक था। पर अब मैं और उपेक्षा और प्रताड़ना बर्दाश्त नहीं करना चाहती थी। मैं अब उस आदमी के साथ एक ही छत के नीचे नहीं रहना चाहती थी जो मुझे इस शून्यता की हद तक ले आया था।
उसका अब मेरे ऊपर कोई भी बस नहीं रहा।
मैं हर गुजरते लम्हें के साथ मजबूत होती गई। प्रार्थना और मार्गदर्शन ने मुझे दृढ़ बना दिया था, जिससे मुझे अपनी बच्ची के साथ रहने और एक सार्थक जीवन जीने का मौका मिला। जब उसने झगड़े शुरू किए, तो मैं संयमित रह सकती थी। जिससे, उसने मुझ पर अपनी सारी शक्तियाँ खो दी। जब मुझे अंततः ये एहसास हुआ कि दुर्व्यवहार झेलने और उसके द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए मेरी शादी नहीं हुई थी, और अपनी बच्ची को ऐसा अपमानजनक विवाह दिखाने की बजाय एक अकेली माँ के रूप रहना कहीं बेहतर है, तो मेरे सारे दुख दूर हो गए। मैं नरक जैसे जीवन से बच कर बाहर आई और मजबूती के साथ एक नया जीवन शुरू किया।
मुझे पता था कि मुझे आगे बढ़ने की जरूरत है और इसलिए मैंने इसकी दिशा में काम किया। मैं अपना दिल खोल कर रोई थी, लेकिन एक बार जब मैं ये कर चुकी, तो मैंने फिर से उन्ही कमजोरियों पर दुबारा कभी न रोने का संकल्प किया। आज, मैं दिल खोल कर मुस्कुराती हूँ, क्योंकि मैं बच गई हूँ। उसने मुझे एकदम बर्बाद कर दिया गया था, लेकिन मैं फिर से उठी, मजबूत हुई और दृढ़ होती गई।
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